न कछु दान सम्मान बिन नष्ट कुभोजन जासु दिन ।
यह कबित सु नर हरि उच्चरै कछु न जन्म हरिमाक्त बिन ।।
नेकबख्त दिलपाक वही जो मर्द सेर नर ।
अव्वल बली खोदाय दियो बिसियार मुलुक जर ।।
तुम खालिक दुर वेश हुकुम पाले सब आलम ।
दौलत वख्त बुलन्द जङ्ग दुश्मन पर जालम ॥
ऐशाह तुरा गोयद खलक कवि नरहरि गोयद अजचनी ।
अकबर बराबर पादशाह मन्दिगर न दीदम् दर दुनी ॥ ९ ॥
तदिन सत्य जनि जाइ जदिन कोउ याचक जच्चै ।
तदिन सत्य जनि जाइ जदिन पर घर मन रच्चै ॥
तदिन सत्य जनि जाइ जदिन कोउ शरणहि आवै ।
तदिन सत्य जनि जाइ जदिन अरि सन्मुख धावै
जनि जाइ सत्य नरहरि कहै बरु बिधना प्राणनि हरै ।
गोरच्छ अकब्बर साह सुन सत्य सुमङ्गल ना टरै ॥ १० ॥
सवैया।
ऐसे बने रघुनाथ कहै हरि काम कला छबि के निधि गारे । झांकि झराखे सो आवत दोख खड़ी भई आनि के आपने द्वार ।। रझिी सरूप सौ भीनी सनेह यों बोली हरे रस आखर भारे । ठाढ हो तोसों कहौंगी कळू अरे ग्वाल बड़ी २ आँखिनवारे ।।
कवित्त ।
फूलन सो बाल की बनाय बेनी गुही लाल भाल दीनी