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कविवचनसुधा।


दोहा।

कागा सब तन खाइयो चुनि चुनि खैयो मास।
ये नैना जनि खाइयो पिया मिलन की आस॥१॥
अली मान ताज सेइये हिलि मिलि प्यारो कन्त।
सब जग मनमायो भयो हाकिम नया बसन्त॥२॥
बल्लम बल्ली प्रेम की तिल तिल चढे सभाय।
ज्वाल जाल ते नहिं जरै कपट लपट जरिजाय॥३॥
मीन काटि जल धोइये खाये अधिक पियास।
तुलसी ऐसी प्रीति है मुयहु मीत की आस॥४॥
तुलसी जप तप नेम ब्रत सब सवहीं ते होय।
नेह निबाहन एक रस जानत बिरलै कोय॥५॥

 

इति कविवचनसुधा समाप्ता॥