पृष्ठ:कवि-प्रिया.djvu/१०६

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हुए है, जो जल, थल मे घूमते है और बल मे जो श्रीगणेश से बढ गये है। जिनकी पीठो पर घन्टे घनघनाते रहते है तथा जिनके घुँघरू छन-छन करके बजते रहते है तथा भौंरे जिनके मस्तको पर (मद के) कारण चारो ओर गूँजते रहते है, जिनके पाने की इच्चा बडे बडे राजा करते हैं, ऐसे-ऐसे अनेक हाथियो को राजा अमरसिह ने दरिद्रो की दरिद्रता के दल को मिटाने के लिए हथियार बना रखा है, अर्थात् इतने हाथी देते है कि उनकी दरिद्रता दूर हो जाती है।

वीरवर का दान (१)

सवैया

पापकै पुंज पखावज केशव शोकके शख सुने सुखमा मै।
झूठिकी झालरि झाझ अलोककी आवभयथन जानी जाममै॥
भेदकी भेरि बड़ेडरके डफ, कौतुकभो कलिके कुरमामै।
जूझतही बर बीरवजे बहुदारिदके दरबार दमामै॥७७॥

'केशवदास' कहते है कि वीरवर 'बीरबल' के युद्ध मे मरते ही कलि-युग के घर मे उत्सव होने लगे। पाप के पखावज और शोक के शख बजने लगे। झूठ की झालरें लटकाई गई, निन्दा के झांझे बजीं तथा और भी कुविचार के ताशो को बजते हुए मैने देखा। भेद की भेरी तथा डर का डफ बजा और दरिद्रता के दरबार मे तो नगाडे ही बजने लगे। क्योकि वह उसी के बडे भारी शत्रु थे।

( २ )

नाक रसातल भूधर सिधु नदी नद लोक रचे दिशिचारी।
केशव देव अदेव रचे, नरदेव रचे रचना न नेवारी॥
रचिकै नरनाह बलीबर बीर भयो, कृतकृत्य बडो ब्रतधारी।
दै करतारपनो कर ताहि दई, करतार दुवौ कर तारी॥७८॥

'केशवदास' कहते है कि ब्रह्मा ने स्वर्ग, नर्क, पहाड, समुद्र, नदी, नद और चौदहो लोक बनाये। फिर देवता राक्षस और मनुष्य बनाये