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'केशवदास' कहते है कि जहाँ अच्छे-अच्छे भोजन, वस्त्र, धन
घर तथा पशु प्राप्त होते है। जहाँ दान, सम्मान होता रहता है और
जहाँ अच्छी-अच्छी सवारियां और रथ इत्यादि तथा वाहन घोडे इत्यादि
मिलते है। जहाँ के लोग, भोग योग, भाग्य, राग प्रेम ) तथा रूप
( सौंदर्य ) से युक्त रहते है और जिनके मुख मे अलकारो से युक्त सुन्दर
भाषा रहती है। अर्थात् जो अलकारमयी सुन्दर भाषा वोलते है।
जहाँ राजा मानसिह का 'गोपाचल' ऐसा दुर्ग है, उसी मध्य देश को देशो
का मुकुटमणि अर्थात् सब देशो मे श्रेष्ठ समझना चाहिए ।
नगर वर्णन
दोहा
खाई, कोट, अटा, ध्वजा, वापी, कूप, तड़ाग ।
वारनारि, असती, सती, वरणहुँ नगर सभाग ॥४॥
हे सभाग | नगर का वर्णन करते समय खाई, कोट (किला )
अटा, ध्वाजा, वापी, कुआ, तालाब, वेश्या, असती ( परकीया ' तथा
सती ( स्वकीया ) का वर्णन करो। [ सभाग को सम्बोधन न माना
जाय तो यह अर्थ होगा कि 'नगर को भिन्न भिन्न भागो सहित
वर्णन करो']
उदाहरण
कवित्त
चहें भाग बाग गन मानहु सघन घन,
शोभा की सी शाला, हंस माला सी सरित बर।
ऊँचे ऊँचे अटनि पताका छाति ऊँची जनु,
___ कौशिक की कन्ही गंग खेलत तरलतर ।
आपने सुखनि आगे निन्दत नरेन्द्र और,
घर घर देखियत देवता से नारि नर ।
'केशौदास' त्रास जहां केवल अदृष्ट ही को,
बारिये नगर और ओरछा नगर पर ॥५॥
पृष्ठ:कवि-प्रिया.djvu/१०९
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