उदाहरण
कवित्त
रामचन्द्र कीन्हें तेरे अरिकुल अकुलाइ,
मेरु के समान प्रान अचल घरीनि मे
सारो, शुक, हंस, पिक, कोकिला, कपोत, मृग,
"केशोदास” कहूँ हय करभ करीनि मे।
डारे कहूँ हार टूटे राते पीरे पट छूटे,
फूटे है सुगन्ध घहू स्रवत तरीनि मे।
देखियत शिखर शिखर प्रति देवता से,
सुन्दर कुंवर और सुन्दरी दरीनि मे ॥११।।
'केशवदास' कहते है कि 'हे रामचन्द्र जी । आपके शत्रुओ ने
व्याकुल होकर अन्य पहाडो को ही कुछ भी घड़ियो मे (अल्पकाल मे)
सुमेरु जैसा बना दिया है। वे शत्रुगण अपने साथ ( भागते समय)
मैना, तोता, हस, पिक, कोयल, कबूतर, हिरन, घोडे और बच्चे सहित
हाथी ले आये हैं। (वे सब जहाँ देखो वहाँ दिखलाई देते हैं ) कहीं
पर किसी का हार टूटा पड़ा है तो कहीं लाल-पीले कपडे छितराये हुये
दिखलाई पड़ते हैं। कहीं सुगन्धित द्रव्यो से भरे घडे फूट गये हैं जिनमे
से वह सुगन्धित द्रव पदार्थ तलहटी तक बह रहा है वहाँ के शिखर-शिखर
पर बैठे हुए सुन्दर राजकुमार देवता से दिखलाई पडती है और गुफाओ मे
उनकी सुन्दरी स्त्रियाँ दिखलाई पडती है।
आश्रम वर्णन
होमधूम युत वरणिये, ब्रह्मघोष मुनिवास ।
सिहादिक मृगमोर अहि, इभ शुभ बैर विनास ॥१२॥
आश्रम का वर्णन करते समय धुआ सहित होम, ब्राह्मणो का वेद
पाठ, मुनियों का निवास, तथा सिंह आदि हिंसकजन्तुओ और मृगो
( पशुओ) तथा हाथियो के, मोर और साँपो के स्वाभाविक बैर-
पृष्ठ:कवि-प्रिया.djvu/११३
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