'केशवदास' कहते है कि देवसभा के समान ही प्रवीण राय का बाग भी है, जिसमे इन्द्र के समान राजा इन्द्रजीत सिंह रहा करते हैं। देव सभा मे जिस प्रकार सुदर्शन-चक्रधारी भगवान करुणाशील श्रीविष्णु रहते है, उसी प्रकार इस बाग मे भी सुदर्शन और करुणा के वृक्ष हैं। वहाँ (देव-सभा मे) कमलासन (ब्रह्मा) का विलास है तो यहाँ (इस बाग मे भी) कमल तथा असना (एक प्रकार का वृक्ष) की छटा है। देवसभा मे मधुवन-मीत (श्रीकृष्ण) रहते हैं और इस बाग को स्वय मधुवन का मित्र समझिए। वहाँ रूपमन्जरी और अपर्णा (पार्वतीजी) सहित नीलकठ (श्रीशंकर जी) सुशोभित होते हैं तो यहाँ भी अपर्णा (करील, रूप मंजरी, और नीलकण्ठ (मोर अथवा नीलकठ पक्षी) शोभा देते हैं। देवसभा में सभी प्रकटरूप से अशोक अर्थात् शोक रहित या आनन्दित रहते हैं तो यहाँ (इस बाग मे) अशोक के वृक्ष हैं, देवसभा मे रभा, मजुघोषा, उरवसी अप्सराएँ अभिमान भरी बातें करती है तो यहाँ इस बाग मे रंभा (केला) के वृक्ष है और मजुघोषा (सुमधुर बोलने वाली कोयल) है, जिसकी वारणी लोगो के उरवसी (हृदय मे बसी) रहती है। वहाँ हस अर्थात् सूर्य देवता हैं तो यहाँ (इस बगोचे मे भी) हस पक्षी हैं। वहाँ सुमनस अर्थात् प्रसन्न मनवाले देवता सब सुख देने वाले है तो यहाँ भी सुमन अर्थात् पुष्प खिले हुए जो सबको सुख दिया करते हैं।
गिरि वर्णन
दोहा
तुङ्ग शृङ्ग दीरघ दरी, सिद्ध, सुन्दरी, धातु।
सुर नरयुत गिरि वरणिये, औषधि निरझर पातु॥१०॥
पहाड का वर्णन करते समय ऊँची चोटी, गहरी गुफाएँ, सिद्धो की
स्त्रियाँ, धातु (लोहा, सोना इत्यादि) देवता और मनुष्य, औषधियाँ तथा झरनो के गिरने का वर्णन करना चाहिए।