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सरिता वर्णन

दोहा

जलचर, हय, गय, जलज तट, यज्ञ कुण्ड मुनिवास।
स्नान, दान, पावन, नदी, वरनिय केशौदास॥१४॥

'केशवदास' कहते हैं कि पवित्र सरिता का वर्णन करते समय जल के जीव, जल के हाथी तथा घोडे़, कमल, किनारे पर बने हुए यज्ञ कुण्ड तथा मुनियो का निवास, स्नान और दान इत्यादि का वर्णन करना चाहिए।

उदाहरण

सवैया

ओरछे तीर तरंगनी बेतवै, ताहि तरै रिपु केशव कोहै।
अर्जुन बाहु प्रवाह प्रबोधित, रेवा ज्यों राजन की रज मोहै।
ज्योति जगै यमुना सी लगै, जग-लोचन ललित पाप विपो है।
सूर सुता शुभ सगम तुंग, तरंग तरगित गंग सी सो है॥१५॥

'केशवदास' कहते है कि ओरछा के निकट वेतवा नदी है; उसे पार कर सके, ऐसा शत्रु कौन सा है? यह सहसार्जुन की भुजाओ द्वारा बढाये हए प्रवाहवाली नर्मदा नदी के समान है, क्योकि इसका प्रवाह भी अर्जुनपाल राजा के द्वारा बढाया गया है। इसके सामने राजाओ का राजापन मूर्छित हो जाता है अर्थात् इसके प्रवाह पर राजाओ का कोई वश नहीं चलता कोई भी राजा इस पर पुल नहीं बँधवा सकता। यह बेतवा नदी अपनी ज्योति (शोभा) के कारण यमुना जैसी लगती है क्योकि जमुना जल जग लोचन (सूर्य) के द्वारा लालित है और यह जग लोचन ( संसार के मनुष्यो के लोगो से ) लालित है अर्थात् इसे सब बड़े प्रेम से देखते हैं। जैसे यमुना पापो को नष्ट कर देती है, वैसे यह भी पापो को दूर कर देती है। सूर्य-सुता ( यमुना ) मे मिलने के कारण यह ऊँची तंरगोवाली गंगा सी सुशोभित होती है। क्योंकि गंगा जी भी यमुना में मिली है।