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पृष्ठ:कवि-प्रिया.djvu/१४०

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व्यवहार करने के छः [ (१) सधि (२) विग्रह (३) यान (४) आसन (५) द्वैधीभाव और (६) (सश्रय) ] अग का ज्ञान हो । जो चौदहो [ (१) ब्रह्मज्ञान (२) रसायन (३) स्वरसाधन (४) वेद पाठ (५) ज्योतिष (६) व्याकरण (७) धनुर्विद्या (८) जलतरण (९) वैद्यक (१०) कृषविद्या (११) कोकविद्या, (१२) अश्वोरोहण (१३) नृत्य और (१४) समाधान करण चातुर्य ] विद्याओ को जानता हो तथा जिसे आगम (भविष्य) सगम (वर्तमान) और निगम (भूत) की जानकारी हो, उसी से राजा को सम्मति लेनी चाहिए।

उदाहरण

सवैया

केशव मादक क्रोध विरोध तजो सव स्वारथ बुद्धि अनैसी।
भेद, अभेद, अजुग्रह, विग्रह, निग्रह सधि कही विधि जैसी॥
बैरिन को बिपदा प्रभु को प्रभुता करै, मत्रिन की मति ऐसी।
राखत, राजन, देवन ज्यों दिन दिव्य विचार विमानन वैस॥२१॥

'केशवदास' कहते हैं कि जिस मन्त्री ने मादक वस्तुओ का उपयोग, क्रोध, विरोध तथा स्वार्थ साधन की बुरी बुद्धि को छोड दिया हो, जो भेद, अभेद, अनुग्रह, विग्रह, निग्रह और सधि के बतलाए हुए नियमो का जानकार हो और जिसकी बुद्धि बैरियो पर विपत्ति डालने वाली तथा अपने स्वामी की प्रभुता को बढाने वाली हो, उसकी बुद्धि तथा दिव्य विचारो से राजा इस प्रकार रक्षित रहते है, जिस प्रकार विमानो से देवता गण सुरक्षित रहा कहते है।

पयान वर्णन

दोहा

चवँर, पताका छत्ररथ, दुदुभि ध्वनि बहु यान।
जल थल मय भूकंप रज, रंजित वरणि पयान॥२२॥