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पृष्ठ:कवि-प्रिया.djvu/१४२

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(समस्त पृथ्वी मडल को) कोलाहल और धूल से भरकर, बनो को तोड फोड कर और पहाडो को चूर्ण करके तथा जल को सुखा-सुखा कर थल कर दिया। 'केशवदास' कहते हैं कि आस-पास के राज्यो मे स्थान स्थान पर अपने कर्मचारियो को नियुक्त करके, वहाँ की सम्मति को अपने हाथ मे कर लिया। जो राजा उन्नत सिर किए हुए थे अर्थात् अभिमान से अपना सिर ऊचा किए हुए थे, उनको झुका कर नम्र बना दिया और जो नत अर्थात् नम्र हुए उन्हे बडा बनाया तथा शत्रुओ की जीविका छीन कर अति मित्र (राजाओ) को दे दी। इस तरह सातो समुद्रो से घिरी पृथ्वी पर अपना आतक जमाकर, श्रीरामचन्द्र जी की सेना सब दिशाओ को जोतकर आ गई।

हय वर्णन

दोहा

तरत तताई, तेजगति मुख सुख, लघुदिन लेख।
देश सुवेश सुलक्षणै, वर्णहु वाजि विशेख॥२५॥

घोडे के वर्णन मे चपलता, तीखापन, द्रुतगति, मुख सुख (मुँह जोर न होना, उत्तम देशवासी, सुन्दर-वेषवाला और अच्छे लक्षणो से युक्त आदि गुणो का उल्लेख करना चाहिए।

उदाहरण

(कवित्त)

बामनहि दुपद जु नाप्यो नभ ताहि कहा,
नापै पद चारि थिर होत यहि हेत है।
छेकी छिति छीरनिधि छांड़ि धाम छत्रतर,
कुड ली कतर लोल चाकै मोल लेत है।
मन कैसे मीत, वीर वाहन समीर कैसे,
नैनन के न्वैनी, नैन नेह के निकेत है।
गुणगण बलित, ललिनगति 'केशौदास'
ऐसे बाजि रामचन्द्र दीनन को देत है॥२६॥