हे कमल से भी बढकर सुन्दर मुख वालो | मैने तुझे बार-बार मना
किया । ( परन्तु तू मान नहीं छोडती ) ? तनिक दर्पण लेकर अपना मुख
देख ! (जिससे मान के आभास का तुझे पता तो चले। तू फिर इसी प्रेम रस
मे डूबेगी ( अभी मान किये बैठी है ) शोभा देखने के बहाने ही तू नायक
की ओर तनिक भी नहीं देखती। हम सब मना-मना कर हार गई ( पर
तू नहीं मानती इसमे अब किसी का दोष नहीं । अपने को ही सुख देने
वाली बातो को तू नहीं मानती, यह अच्छा नहीं करती । तुझे सौगध है
जो तू मान छोडे । अभी तो तू नायक के मानने पर मानती नहीं, फिर
(जब नायक चला जायगा ) प्रेम न आकर, तू ( नायक को मानने के
लिए ) मुझसे विनती करेगी।
हरित हरित हार, हेरत हियो हेरात,
हारी हौ हरिन नैनी हरि न कहू लहौ ।
वनमाली ब्रज पर, बरसत वनमाली,
वनमाली दूर दुख केशव कैसे सहौ।
हृदय कमल नैन, देखिकै कमल नैन,
होहंगी कमल नैनी, और ही कहा कहौ ।
आप घने घनश्याम, धन ही से होत धन,
सावन के द्यौस घन स्याम बिनु क्यों रहौ ॥४१॥
( एक सखी से अपनी विरहावस्था का उल्लेख करती हुई नायिका
कहती है कि ) जिन हरे-हरे जगलो को देखकर हृदय विमुग्ध होता है,
उन्हे देख-देख कर मै हरिन जैसे नेत्र वाली हार गई, परन्तु हरि (श्रीकृष्ण)
कहीं पर भी नहीं मिलते । वनमाली ( वनो से घिरे हुए ) ब्रज पर
बनमाली अर्थात् बादल बरस रहे है और बनमाली-श्री कृष्ण-दूर है।
मै इस दुख को कैसे सहूँ? और यदि हृदय-कमल के नेत्रो मे कमल
नयन ( कमल जैसे नेत्र वाले ) श्री कृष्ण को देखकर स्थिर रहूँ-तो
पृष्ठ:कवि-प्रिया.djvu/१५०
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