उसका सबसे प्रेम और क्रोध करना भूल गया। ससार के भ्रम स्वरूप रात-दिन के ज्ञान का आभास भी मिट गया। (अर्थात् रात और दिन की पहचान भी नहीं रही)। 'कौन अपना है? कौन पराया?' इसकी भी पहचान नहीं रही। ठड और गर्म की पहचान भी जाती रही थोडी ही देर में राधा की ऐसी दशा हो गई कि कुछ कहते नहीं बनता। हे केशव (कृष्ण)! पता नहीं, एकही बार मे (अचानक) उसके सातो सुख क्यो छूट गये हैं?
स्वयवरवर्णन
दोहा
शची स्वयम्बर रक्षिणी, मण्डल मंचबनाव।
रूप, पराक्रम, वंशगुण, वर्णिय राजा राव॥४४॥
स्वयवर की रक्षिणी या अधिष्ठात्री शची (इन्द्राणी), मडलाकार मच की बनावट और राजा-रावो के रूप, पराक्रम, वश तथा गुणो का उल्लेख स्वयबर के वर्णन मे करना चाहिए।
उदाहरण
सवैया
मण्डली मंचनिकी नृपमण्डल, मण्डित देखिये देव सगासी।
दन्तनिकी धुति देहकी दीपति, भूषणज्योति समेत अभासी॥
फूलनिकी छवि अम्बर की छवि छत्रनकी छवि तत्क्षण भासी।
सोहत है अति सीयस्वयम्वर अानन चन्द्र प्रवेश प्रभासी॥४५॥
सीताजी के स्वयबर मे मचो की मडली है। उन पर बैठी हुई राजाओ की मण्डली देव-सभा सी जान पड़ती है। उनके दाँतो की धुति, शरीरो की चमक तथा गहनो की कान्ति अनन्त आभा सी जान पडती है। फूलो की शोभा, आकाश की छवि तथा राजछत्रो की शोभा भी उस समय प्रकाशित हो रही है। उस स्वयबर के बीच में सीता