पृष्ठ:कवि-प्रिया.djvu/१६७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
(१५२)

उदाहरण-५

दोहा

बॉचि न आवै लिखि कछू, जानत छांह न घाम।
अर्थ, सुनारी, बैदई करि जानत पतिराम॥२९॥

'पतिराम' (सुनार) को न तो पढना आता है और न वह कुछ लिखना ही जानता है तथा न उसे धूप तथा छाया अर्थात् गर्मी-सर्दी का ही ज्ञान है। परन्तु फिर भी वह कविता का अर्थ लगाना, सुनारी करना तथा वैद्यक का काम भली भॉति जानता है।

[पतिराम केशवदास' के पड़ोस में रहने वाला एक सुनार था। कहते है कि विद्वानो की सत्सगति से उसे कविता का अर्थ लगाने का सुन्दर आभास हो गया था। अत केशवदास जी ने उक्त दोहा उसके सम्बन्ध मे लिख कर उसे अमर बना दिया।

ऊपर के पाँचो उदाहरणो मे अपूर्ण कारणो से कार्यों की सिद्धि हुई है, अत विशेष अलकार है।]

६-उत्प्रेक्षा

दोहा

केशव औरहि वस्तु मे, औरै कीजै तर्क।
उत्प्रेक्षा तासों कहै, जिन की बुधि सपर्क॥३०॥

'केशवदास' कहते है कि जहाँ और वस्तु मे और की कल्पना की जाती है वहाँ बुद्धिमान लोग उत्प्रेक्षा कहते है।

उदाहरण (१)

हर को धनुष तोरयो, रावण को वंश तोरयो,
लंक तोरी, तोरै जैसे वृद्ध बश बात है।
शत्रुन के सेल, शूल, फूल, तूल, सहे राम,
सुनि 'केशौराय' कीसो हिये हहरात है।