( १५३ )
काम तीर हू ते तिक्ष तारे तरुणीन हू के
लागि लागि उचरि परत ऐसे गात है।
मेरे जान जानकी तू जानति है जान कछू,
देखत ही तेरे नैन मैन से है जात है ॥३॥
जिन्होने महादेव जी का धनुष तोडा, रावण के वश का नाश कर
दिया और लका ऐसे तोड डाली ( नष्ट कर डाली ) जैसे वृद्ध की कमर
को वात रोग तोड डालता है अथवा जैसे वातु पुराने बास को तोड डालती
है। श्रीराम ने शत्रुओ के सेल और शूलो को फूल तथा रूई की तरह
सहन कर लिया, जिसे सुनकर केशवराय ( ईश्वर ) की सौगध हृदय
कपित हो जाता है। उनके शरीर पर, युवतियो के काम-वाणो से भी
तेज नेत्र-तारे ( तीखीदृष्टि ), लग-लग कर उचट जाते है अर्थात् कोई
प्रभाव नहीं पड़ता। मेरी समझ मे, हे जानकी, तू कुछ जादू जानती है कि
वह श्रीराम तेरे नेत्रो के देखते ही मोम से हो जाते है ।
उदाहरण (२)
कवित्त
अंक न, शशंक न, पयोधिहू को पंक न सु,
अंजन न रजित, रजनि निज नारी को।
नाहिनै झलक झलकति तमपान की न,
छिति छोड़ छाई, छिद्र नाही सुखकारी को।
'केशव' कृपानिधान देखिये विराजमान,
• मानिये पमान राम बैन बनचारी को।
लागति है जाय कंट, नाग दिगपाजत के,
मेरे जान सोई कच्छ कीरति तिहारी को ॥३२॥
( चन्द्रमा के कलक के सम्बन्ध मे अपने विचार प्रकट करते हुए
श्रीहनुमान जी श्रीरामचन्द्र से कहते है कि ) न तो यह दाग है, न, जैसा
लोग समझते है, मृग का चिन्ह है, न समुद्र का कीचड लगा है, और न
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