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जहा सान्तवना और उपदेश दे-देकर, पति को रोका जाता है, वहाँ
शिक्षाक्षेप होता है । उसे यहाँ बारह प्रकार से वर्णन किया गया है।
१-चैत्रवर्णन
छप्पय
फूली लतिका ललित, तरुनितर फूले तरुवर ।
फूली सरिता सुभग, सरस फूल सब सरवर ॥
फूली कामिनि कामरूपकरि कतनि पूजहि ।
शुक-सारी-कुल केलि फूलि कोकिल कल कूजहि ॥
कहि केशव ऐसी फूल महि शूलन फूल लगाइये ।
पिय आप चलन की को कहै चित्त न चैत चलाइये ॥२४॥
चेत्र मे सुन्दर लताएँ, पूर्ण युवती होकर, फूल रही है । सुन्दर पेड
भी फूल रहे है । नदियाँ तथा तालाब आदि भी फूले हुए है.
अर्थात् प्रसन्न दिखलाई पडते है। कामिनियाँ भी फूली हुई है और
कामोत्तेज्जित होकर अपने-अपने पति की पूजा में लग रही है। तोता
मैना, फूल कर क्रीडा कर रहे है और कोयल भी फूलकर ध्वनि कर
रही है। ( 'केशवदास' नायिका की ओर से कहते है कि ) हे प्रियतम ।
ऐसी फूल मे (प्रसन्नता के वातावरण मे ) आप शूल ( काटे ) न
चुभाइये अर्थात् रग मे भग न कीजिए । हे प्रियतम | इस चैत मास में
आपके चलने की बात कौन कहे, चलने का विचार तक न करना
चाहिए।
२–वैशाख वर्णन
केशवदास अकास अवनि बासित सुवास करि ।
बहत पवन गति मंद गात, मकरंद बिदु धरि॥
दिशि विदिशिनि छवि लाग भाग पूरित परागवर ।
होत गन्ध ही अन्ध बौर भौरा विदेशि नर ॥
पृष्ठ:कवि-प्रिया.djvu/१७९
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