पृष्ठ:कवि-प्रिया.djvu/२०८

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तीसरा अर्थ

नाथ-नाथ श्रीशंकर जी के पक्ष मे

जो प्रभायुक्त और परमहस की भॉति रहते है और फिर भी अपने पुत्र (श्रीगणेश अथवा कार्तिकेय) की कीर्ति को सुनकर सुख पाते है। जो संगीत के मित्र है तथा देवता लोग जिनकी प्रशंसा करते है। जो सुखदायिनी शक्ति (श्री पार्वती जी) के साथ रहते है और शरीर धारण के कष्टो से छुड़ाने के कारण कामदेव के स्नेही है। जो अनेक मुख वाले है। जो दास रूप से भगवान् नारायण के यश को गाते रहते है। जिनके शिर पर द्वितीया का चन्द्रमा सुशोभित होता है। जो कमलासन या पद्मासन लगाकर बैठते है और श्री लक्ष्मी जी के प्रिय है। इन गुणो से युक्त श्रीशंकर जी को मानना चाहिए।

चौथा अर्थ

श्री रघुनाथ के पक्ष में

जिन्हे परम हंस-समूह महात्मा गण बड़े अच्छे लगते है और जो उनकी प्रशंसा सुनकर सुख पाते है। जिन्हे सङ्गीत अच्छा लगता है तथा जिनकी देवतागण प्रशंसा किया करते है। जो शुख देने वाली शक्ति (श्री सीता जी के साथ रहते है और जो युद्ध प्रेमी है। बहु-वदन (अनेक मुखवाले) रावण को मारने के कारण जिनका यश सभी को विदित है और 'केशव' कहते है कि 'दास' अर्थात् भक्त जिनका यश गाते है। जिनके साथ द्विजराज चन्द्र) पद (शब्द) सुशोभित होता है (अर्थात रामचन्द्र कहलाते है)। जो स्वच्छ चमकीले भूषणो से सुशोभित है और परदार (उत्कृष्ट द्वारा) श्री सीता जी के प्यारे है। ऐसे गुणो से युक्त श्रीरघुनाथ जी को समझना चाहिए।

पाँचवा अर्थ

श्रीराजा अमरसिंह के पक्ष मे

जिन्हे परम (श्री शंकर भगवान् एकलिङ्ग) अच्छे लगते है और हंसजात अर्थात् सूर्यवंश के गुणो को सुनकर जिन्हे सुख मिलता है।