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मानसिक पुत्रो के गुणो ( शास्त्र सबधी वाद विवाद आदि ) को सुन
कर सुख पाते है । अथवा जो हसावतार श्रीनारायण और अपने
मानसिक पुत्रो के गुणो को सुनकर सुखी होते है । सगीत ( साम वेद
आदि ) के मित्र है और जो विशेष बुद्धिमान कहे जाते है अथवा
जिनकी प्रशसा विवुध ( देवता ) गण करते हैं । सुख देने वाली शक्ति
(श्रीसरस्वती जी ) के घर है , और कामदेव के स्नेही अर्थात् सखा है
तथा बहुत मुख वाले है । उनका यश सभी को विदित है और वह
'केशव' (श्रीनारायण भगवान् ) के दास है , इसलिए उनके गुण गाया
करते है । उनके सुन्दर चरण द्विजराज ( पक्षियो के राज-हस ) पर
सुशोभित होते है और उनका आसन कमल है और जिन्हे ब्रह्माणी जी
प्रिय है । ऐसे श्री ब्रह्मा जी है ।
दूसरा अर्थ
त्रिलोकीनाथ श्रीकृष्ण के पक्ष मे
जिन्हे हंस-जात ( सूर्य से उत्पन्न ) यमुना जी परम प्यारी लगती
है , इसीलिए उनके गुणो को सुनकर उन्हे सुख मिलता है । वह सगीत
के मित्र है तथा देवतागण उनकी प्रशसा करते है । जो सुखदायिनी
शक्ति श्रीराधिकाजी के साथ रहने वाले है और कामदेव के मित्र है ।
जिन्होने रास रचते समय बहुत से शरीर धारण किये थे, यह बात सभी
लोगो को विदित है 'केशव' कहते है कि जिनका यश दास (भक्त लोग)
बखानते रहते है । अथवा 'केसवदास' कहते है कि उनके विदित यश
का वर्णन अनेक मुखो द्वारा होता रहता है । जिनके हृदय पर द्विजराज
( ब्राह्मण वर ) भृगु का चरण सुन्दर भूषणवत् सुशोभित होता है ।
जो श्रेष्ठ नारियो के प्रत्यक्ष साथी है और जिन्हे परनारियाँ
प्रिय है। इन गुणो से युक्त त्रिलोक नाथ श्रीकृष्ण को समझाना
चाहिए।
पृष्ठ:कवि-प्रिया.djvu/२०७
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