पृष्ठ:कवि-प्रिया.djvu/२१०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
(१९३)

काम सेना वेश्या कामदेव की सेना के समान ही बनकर आई है। क्योकि जिस कामदेव की सेना में सुकेशी, मजुघोषा, रति तथा उरवसी जैसी सुन्दरियां रहती है, उसी प्रकार कामसेना भी सुकेशी (सुन्दर बाल वाली) मजुघोषा (मधुर बोलने वाली रति के समय हृदय मे बसने वाली है। जिस प्रकार काम की सेना देखने में सुन्दर लगती है, उसी प्रकार कामसेना वेश्या की भी सुहावनी मूर्ति है। जिस प्रकार कामदेव की सेना सुन्दर स्वर और रागरग से युक्त रहती है उसी प्रकार यह कामसेना वेश्या भी सुन्दर स्वरवाली और सुंगध तथा रागरंग से युक्त रहती है। काम की सेना का जिस प्रकार बदन कमल है, उसी प्रकार इसका मुख भी कमल के समान है। जैसे काम की सेना मे भौंरे गुँजारते है वैसे इसके मुख कमल पर भी भौंरे मॅडराते है। जिस प्रकार काम की सेना मे टेढी भौंहे, टेढे धनुष का काम करती है और आँखो की तिरछी दृष्टि बाण के समान शरीर को भेद डालते है, उसी प्रकार इस काम सेना वेश्या की टेढी भौंहे तथा ऑखो की तिरछी दृष्टि धनुष-वाण का काम देती हुई शरीर को भेद डालती है। कामदेव की सेना जिस प्रकार तन और मन को सुख देने वाली होती है, उसी प्रकार यह कामसेना वेश्या भी शरीर और मन को सुख दायिनी है। काम की सेना मे जिस प्रकार उन्नतकुच और दामिनी जैसी नायिकाएँ होती है उसी प्रकार यह कामसेना भी उन्नत कुचवाली और दामिनी जैसी सुन्दर वर्ण की तथा चचल है। काम की सेना जिस प्रकार अपने नाथ (कामदेव) के साथ रहती है, उसी प्रकार यह अपने साथ राजारामसिंह के साथ रहती है।

भिन्नपद श्लेष

दोहा

पदही मे पद का ढिये, ताहि भिन्नपद जानि।
भिन्नभिन्न पुनि पदनिके, उपमा श्लेष बखानि॥३६॥

१३