दुसरा प्रभाव
कविवंश वर्णन
ब्रह्मादिक के विनय ते, प्रकट भये सनकादि ।
उपजे तिनके चित्त ते, सब सनाढ्य की आदि ॥१६
परशुराम भृगुनद तब, तिनके पाय पखारि।
दिये बहत्तरि ग्राम सब, उत्तम विप्र विचारि ॥२॥
जगपावन बैकठपति, रामचन्द्र यह नाम ।
मथुरा-मडल मे दिये, तिन्हें सात सै ग्राम ॥३॥
सोमवंश यदुकुल कलश, त्रिभुवनपाल नरेश ।
फेरि दिये कालकाल पुर, तेई तिनहि सुदेश ॥४॥
कुंभवार उद्देश कुल, प्रकटे तिन के बस ।
तिन के देवानन्द सुत, उपजे कुल अवतस ॥१॥
तिनके सुत जगदेव जग, थापे पृथ्वीराज।
तिनके दिनकर सुकुल सुत, प्रगटे पंडितराज ॥६॥
दिल्लीपति अल्लावदी, कीन्ही कृपा अपार ।
तीरथ गया समेत जिन, अकर कियो के बार ॥७॥
गया गदाधर सुत भये, तिनके आनंदकन्द ।
जयानन्द तिनके भये, विद्यायुत जगबन्द ।।
भये त्रिविक्रम मिश्र तव, तिनके पण्डितराय।।
गोपाचल गढ़ दुर्गपति, तिनके पूजे पाय |
भावशर्म तिनके भये, तिनके बुद्धि अपार ।
भये शिरोमणि मिश्र तव, षटदरशन अवतार ॥१०॥
मानसिह सों रोप करि, जिन जीती दिशि चारि।
ग्राम बीस तिनको दये, राना पायें पखारि ॥११॥
पृष्ठ:कवि-प्रिया.djvu/२२
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