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श्रीरघुनाथ गनो असमर्थ न, देखि बिना रथ हथिहि घोरहि।
तोयो शरासन शंकर को जिहि, शोच कहा तुव लक न तोरहि॥५९॥

(मन्दोदरी ही फिर कह रही है कि) जब दूसरे (सुग्रीव) का अपराध करके उनके हाथ से बालि नहीं बच सका, तब तुम उन्हीं का अपराध करके कैसे बचोगे? (केशवदास मन्दोदरी की ओर से कहते है कि) जब उन्होने क्षीर समुद्र मथ डाला, तब इस छोटे समुद्र को क्यो न बॉधलेंगे। इसलिए तुम श्रीरघुनाथ जी को, बिना रथ, घोड़े और हाथियो के देख असमर्थ न समझो। जिन्होने श्रीशङ्कर जी का धनुष तोड डाला, वह तुम्हारी लङ्क (कमर) को न तोड़ सकेगा--इसमे सोच-विचार ही क्या है।

अद्भूत रसवत

उदाहरण (१)

कवित्त

आशीविष, सिन्धु विष, पावक सों नातों कछू
हुतो प्रह्लाद सों, पिता को प्रेम टूटो है।
द्रौपदी की देह में खुशी ही कहा दु.शासन,
खरोई खिसानों खैचि बसन न खूँटो है।
पेट में परीछित की, पैठि के बचाई मीचु,
जब सब ही को बल विधवान लूटो है।
केशव अनाथन को नाथ जो न रघुनाथ,
हाथी कहा हाथ कै हथ्यार करि छूटो है॥६१॥

जिस समय पिता का प्रेम टूट गया, उस समय सर्प हलाहल विष, तथा अग्नि से क्या प्रह्लाद का कुछ नाता था (जो वह बच गया)? द्रौपदी की देह मे क्या वस्त्रो की धरोहर रखी हुई थी, जो दुशासन