कैसोहै तेरो हियो हरि में रहि, छोरै नहीं तनु छूटत मेरो।
बूँदकदूधको मारयो है बांधि, सुजानत हौ माई जायो न तेरो॥६६॥
(कोई एक ब्रजनारी यशोदा जी से कहती है कि) मैं तो धोखे से भी अपने बच्चे को भौंहे चढाकर जी कड़ा करके डरवाती हूँ तो (केशवदास उसकी ओर से कहते है कि) मुझे उसका करोड़ो भाँति से, हृदय में महादुख होता है इसीलिए कहती हूँ कि जरा इधर देख! तेरा हृदय श्रीकृष्ण के प्रति कैसा है? तनिक ठहर जा! (देख ऐसी गाँठ लगाई है कि) तनिक भी खोलने से नहीं खुलती तूने एक बूँद दूध को फैला देने पर अपने पुत्र को बाँधकर मारा है इससे ऐसा समझती हूँ कि यह तेरा जन्माया हुआ नहीं है।
[इसमे 'जायो न तेरो वाक्याश से तुझे पुत्र के प्रति प्रेम नहीं है' अर्थ सूचित होता है अत अर्थान्तर न्यास है।]
अर्थान्तर न्यास के चार भेद
दोहा
युक्त, अयुक्त, बखानिये, और अयुक्तायुक्त।
केशवदास विचारिये, चौथो युक्तायुक्त॥६७॥
'केशवदास' कहते है कि (अर्थान्तर न्यास के) (१) युक्त (२) अयुक्त (३) अयुक्तायुक्त और (४) युक्ता युक्त ये चार भेद माने जाते है।
१-युक्त अर्थान्तर न्यास
दोहा
जैसो जहाँ जु बूझिये, तैसो तहाँ सु आनि।
रूपशील गुण युक्ति बल, ऐसो युक्त बखानि॥६८॥
जिसको जैसा समझकर वर्णन किया जाय, उसको रूप, शील, गुण और युक्ति बल से वैसा ही प्रमाणित भी किया जाय तब उसे युक्त कहते हैं।