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शान्त रसवत

उदाहरण

सवैया

देइगो जीवनवृत्ति वहै प्रभु है सबरे जगको जिनदैये।
आवत ज्यों अन उद्यमते सुख, त्यों दुख पूरबके कृत पैये॥
राज औ रङ्क सुराज करो, अब काहे को केशव काह डरैये।
मारनहार उबारनहार सुतौ सबके शिर ऊपर हैये॥६४॥

जो प्रभु सारे संसार को जीवन वृत्ति देता है, वही मुझे भी जीविका देगा। बिना उधम किये जैसे सुख मिलता है वैसे ही पूर्वजन्म कृत पुण्य के अनुसार दुख भी प्राप्त होता है। 'केशवदास' कहते है कि (यही सोचकर राजा और रंक सभी आनन्द करो क्योकि मारने और बचावे बाला तो सबके ऊपर है ही।

(इसमे ईश्वर पर दृढ विश्वास की शिक्षा दी गई है, अत: शान्त रसवत अलंकार है)

१८--अर्थान्तर न्यास

दोहा

और जानिये अर्थ जहँ, औरे वस्तु बखानि।
अर्थातर को न्यास यह, चारि प्रकार सुजानि॥६५॥

जहाँ दूसरी वस्तु का वर्णन करके, दूसरा अर्थ लगाया जाय, वहाँ अर्थान्तर न्यास अलंकार होता है। यह चार प्रकार का समझना चाहिए।

सामान्य उदाहरण

सवैया

भोरेहूँ भौह चढ़ाय चितै, डरपाइये कै मन केहूँ करेरो।
ताको तौ केशव कोरहिये दुख होत, महा सु कहौ इत हेरो॥