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४-युक्ता-युक्त अर्थान्तर न्यास
दोहा
दादा
इष्ट बात अनिष्ट जह, कैसे हूँ है जाय ।
सोई युक्तायुक्त कहि, बरणत कवि सुखपाय ॥७॥
जहाँ अशुभ वर्णन किसी प्रकार शुभ वर्णन हो जायें, वहाँ कवि
लोग युक्तायुक्त अर्थान्तर न्यास कहा कहते है ।
उदाहरण (१)
सवैया
शूल से फूल, सुवास कुवाससी, भाकसी से भये भौन सभागे ।
केशव बाग महाबनसो जुरसी चढी जोन्ह सबै अंग दागे।।
नेह लग्यो उन नाहरसो, निशि नाह घरीक कहुँ अनुरागे ।
गारीसे गीत बिराबिषसी सिगरेई शृगार अँगार से लागे॥७६।।
___ उसे फूल शूल जैसे प्रतीत होने लगे, सुगध दुर्गन्ध ज्ञात होने लगी
और सुन्दर भवन जलती हुई भद्दी सा लगने लगा। 'केशवदास' कहते
है बाग, महावन ( घोर जङ्गल ) सा प्रतीत हुआ और चाँदनी तो ऐसी
ज्ञात हुई मानो ज्वर चढा है जिसने उसके सब अङ्ग झुलसा दिए हो।
जिस नायक से उसका प्रेम था वह एक क्षण भर के लिए कहीं पर रुक
गये तो उसे सगीत, गाली जैसा, पान का बीडा विष सा और सब शृङ्गार
अगार से लगने लगे।
[ इसमे फूल को शूल, सुवास को कुवास, भवन को भट्टी,
बाग को घोर जगल, चाँदनी को ज्वर, गीत को गाली और पान
के बीडे को विष तथा शृङ्गारो को अगार सदृश कह कर युक्त
पदार्थो को अयुक्त कर दिया गया है। अत युक्तायुक्त अर्थान्तरन्यास
अलकार है।
पृष्ठ:कवि-प्रिया.djvu/२३४
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