पृष्ठ:कवि-प्रिया.djvu/२३६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
(२१९)

१---युक्त व्यतिरेक

कवित्त

सुन्दर सुखद अति अमल सकल विधि,
सदल सफल बहु सरस सङ्गीत सों।
विविध सुवास युत 'केशौदास' आस पास,
राजै द्विजराज तनु परम पुनीत सों।
फूले ही रहत दोऊ दीबे होत प्रति पल,
देत कामनानि सब मीत हू अमीत सों।
लोचन वचन गति बिन, इतनोई भेद,
इन्द्र तरुवर अरु इन्द्र इन्द्रजीत सो॥७६

इन्द्र तरुवर (कल्प वृक्ष) और राजा इन्द्रजीत मे इतना ही भेद है कि कल्प वृक्ष बिना लोचन, वचन तथा गति के है और इन्द्रजीत मे ये सब बातें भी विद्यमान है। अन्यथा दोनो ही सुन्दर है, सब तरह से सुख देते है और सब प्रकार से निर्मल है। कल्पवृक्ष सदल (पत्तो सहित) है तो राजा इन्द्रजीत भी सदल (सेना सहित) है। वह सफल है तो यह भी सफल (फल देने वाले) है। केशवदास' कहते है वि वह आस-पास सुगन्ध फैलाता है। तो यह भी सुवास सुन्दर वस्त्रो के सहित) है। और इनके आस पास दास रहते है। उस पर द्विजराज (पक्षीगण) बैठे रहते है। इनके पास और (द्विजराज) ब्राह्मण रहते है। दोनो का शरीर परम पवित्र है दोनो ही फूले रहते है। दोनो ही मित्र तथा शत्रु की कामनाओ को पूरा करते है।

[राजा मे कल्पवृक्ष की अपेक्षा ऊपर लिखी हुई तीन बाते अधिक है अर्थात् वह देख भी सकते है , बोल भी सकते है और चल भी सकते और कल्पवृक्ष इन गुणो से हीन है। अत: व्यतिरेक अलंकार हुआ।]