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गई । कोयल बेचारी कूक-कूककर हार गई और चातकी बुलाने की
चेष्टा कर-करके हार गई ( पर उस पर असर नहीं हुआ)
[ यहाँ सभी कारणो के रहते हुए भी कार्य सिद्ध नहीं होता अत
विशेषोक्ति हुई ]
उदाहरण-३
सवैया
कर्ण कृपा द्विज द्रोण तहाँ, तिनको पन काहू पै जाय न टारयो।
भीम गढाहि धर धनु अर्जुन, युद्ध जुरे जिनसों यम हारयो ।
केशवदास पितामह भीषम, माच करी बश लै दिशि चारयो ।
देखतही तिनके दुरयोधन द्रौपदी, सामुहे हाथ पसारथो ॥१७॥
कर्ण, कृपाचार्य और द्रोणाचार्य, जैसे वीर जिनका व्रत किसी के
हटाये नहीं हटता था, विद्यमान थे । गदाधारी भीम तथा धनुर्धारी
अर्जुन सरीखे भी थे जिनसे युद्ध करने पर यम भी हार जाते थे।
'केशवदास' कहते है कि भीष्म पितामह जैसे वीर, जिन्होने चारो ओर
मृत्यु तक को वश मे कर लिया था विद्यमान थे परन्तु इन सबो के
देखते-देखते दुर्योधन ने द्रोपदी के आगे हाथ फैला ही दिया ।
[अनेक प्रबल कारण द्रौपदी के आगे हाथ फैलाने के कार्य को न
रोक सके अत विशेषोक्ति हुई ]
उदाहरण-४
सवैया
वेई है बान विधान निधान, अनेक चमू जिन जोर हईजू ।
वेई है वाहु वहै धनु धीरज, दीह दिशा जिन युद्ध जई जू॥
वेई है अर्जुन आन नही जगमे, यशकी जिनि बेलि बई जू।
देखतही तिनके तब कोलनि, नीकहि नारि छिनाय लई जू ॥१८॥
पृष्ठ:कवि-प्रिया.djvu/२४८
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