पृष्ठ:कवि-प्रिया.djvu/२५२

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है (ऐसी गॅवारिन सी) तुम्ही प्रेम को नहीं निबाहते (तुम ही न बाहो नेहु)।

[इसमे ऊपर से श्रीकृष्ण की प्रशसा जँचती है पर है वास्तव मे निन्दा। उधर नायिका की निन्दा प्रतीत होती है पर है वास्तव मे स्तुति]

उदाहरण

ब्याजस्तुति

कवित्त

केसर, कपूर, कुँद, केतकी, गुलाब लाल,
सूधत न चपक चमेली चार तोरी है।
जिनकी तू पासवान बूझियत, आस पास,
ठाढ़ी 'केशौदास' किन्ही भय भ्रम भोरी है।
तेरी कौनो कृति किधौ सहज सुबास ही ते,
बसि गई हरि चित कहूँ चोरा चोरी है।
सुनहि! अचेत चित, आई यह हेत, नाही,
तोसो ग्वारि गोकुल मे गोबरहारी थोरी है॥२४॥

जब से तेरी देह की सुगन्ध पाली है, तब से लाल (श्रीकृष्ण) केसर, कपूर, कुन्द, केतकी और गुलाब को सूँघते तक नहीं और सुन्दर चमेलियो को तो उन्होने तोड़कर फेंक दिया है। केशवदास (सखी की ओर से) कहते है कि तू जिनकी दासी जैसी जान पड़ती है, ऐसी बहुत सी सुन्दरियाँ उनके आस-पास भय और भ्रम मे विमूढ होकर खड़ी है। यह तेरा ही कोई जादू है या स्वाभाविक सुवास ही के कारण तू ही श्री कृष्ण के चित्त मे चुपचाप बस गई है? सुन! वह