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पृष्ठ:कवि-प्रिया.djvu/२५४

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(२३७)

[यह श्रीकृष्ण की निन्दा है इसी मे उनकी स्तुति का भाव भी निकलता है, वह इस प्रकार है--]

जिनकी माया समझ में नहीं आती और चक्कर मे डाल देती है जो एक हाथ से पुण्य और एक हाथ मे पाप कर्मों को विचारते हैं। जो लक्ष्मी के प्यारे है, गजेन्द्र को बचाने वाले हूँ जिनका चन्द्रमा सा मुँह है और जो सब जीवो की देह का बनानेवाले है। आज तक जो ब्रह्मादि देवताओ की रक्षा करते आये और जो वर देने वाले है तथा जिन्हे विनोद ही अच्छा लगता है। इतने पर भी नाथ रहित है अर्थात् उनका कोई स्वामी नहीं है और क्षीर समुद्र में सोने वाले है। अत: राजाओ को छोड़कर जो इन देव पुरुष को राज तिलक दिलवाने की बात भीष्म कहते है उनकी प्रशंसा मै क्या करूँ क्योकि ये कृष्ण न तो पुरुष हैं और न स्त्री (क्योकि ब्रह्म तो नपुंसक माना गया है)

२४---अमित अलङ्कार

दोहा

जहां साधनै भोगई, साधक की शुभ सिद्धि।
अमित नाम तासों कहत, जाकी अमित प्रसिद्धि॥२६॥

जहाँ पर साधक (कार्य को करने वाले) की सफलता का श्रेय साधन (जिसके द्वारा कार्य हो) भोगता है उसको अमित प्रसिद्धि वाले अर्थात् विख्यात पुरुष अमित अलंकार कहते है।

उदाहरण (१)

सवैया

आनन सीकर सोक हियेकत? तोहित ते अतिआतुर आई। फीकी भयो सुखही मुखराग क्यों? तेरे पिया बहुबार बकाई॥