पृष्ठ:कवि-प्रिया.djvu/२७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
( १७ )

छन्द विरोधी पंगु गुनि, नगन जो भूषण हीन।
मृतक कहावै अरथ बिन, केशव सुनहु प्रवीन।।८।।

'केशव' कहते हैं कि हे प्रवीणराय सुनो! छन्द-शास्त्र के विरुद्ध रचना 'पगु' तथा भूषण हीन ( अलकार-रहित ) 'नग्न' और अर्थ रहित मृतक कहलाती है।

उदाहरण


(१) पथविरोधी 'अन्ध' दोष।

सवैया

कोमलकंज से फूल रहे कुच, देखतही पति चन्द विमोहै।
बानर से चल चारु विलोचन, कोये रचे रुचि रोचन कोहै।।
माखन सो मधुरो अधरामृत, केशव को उपमाकहुँ टोहै।
ठाढी है कामिनी दामिनसी, मृगभाभिनिसी गजगामिनिसोहै।।९।।

कोमल-कज जैसे कुच फूल रहे हैं जिन्हे देखकर पति रूपी चन्द्र मोहित होता है। बंदर जैसे चचंलनेत्र है और उन नेत्रो के कोए रोरी जैसे लाल हैं। अधरामृत मक्खन सा है। बिजली जैसी गजगामिनी नायिका मृगभामिनी ( हिरनी ) जैसी खड़ी है।

[ इसमे कुचो का वर्णन करते हुए उन्हे कमल के समान कहा गया है जो कवि परम्परा के विरुद्ध है अतः पथविरोधी अन्ध दोष है। कमल के साथ पति को चन्द्र कहना भी पथविरोध है क्योंकि कमल और चन्द्रमा का परस्पर विरोध है। इसी प्रकार नेत्रो को बन्दर के नेत्रो की उपमा तथा कोयो को रोरो जैसा लाल कहना भी पथ विरुद्ध दोष है। ओठो को मक्खन जैसा बतलाना कवि परम्परा के विरोधी है, क्योकि आठो को मक्खन जैसा श्वेत और कोमल होना भद्दा समझा जाता है। 'गजगामिनी' स्त्री मृग-भामिनी ( मृगी ) जैसी खड़ी है' इस वाक्य में भी पथविरोध है ]