कुकृम की बास, घनसार की सुबास, भये,
____ फूलनि सी बास मन फूलिकै मिलन को ।
हेसि हसि मिले दोऊ, अन ही मिलाये, मान,
शूटि गयो एक बार राधिका रवन को ॥२६॥
'केशवदास' कहते है कि बादलो की घोर ध्वनि, मोरो का शोर,
और सखियो का गान सुनकर, बिजली की चमक, दीपक का प्रकाश
तथा फूलो के भवन मे फूलो ही की सेज देखकर, कुकुम, कपूर तथा
फूलो की सुगन्ध को सूचकर श्रीकृष्ण का मन उमग मे आकर मिलने की
इच्छा करने लगा अत दोनो [ राधा-कृष्ण ] बिना मिलाये ही हँस हँस
कर मिल गये और एक ही बार में राधा और श्रीकृष्ण का मान
छूट गया ।
३३–प्रहेलिका अलंकार
दोहा
बरणत वस्तु दुराय जह, कौनहु एक प्रकार ।
तासो कहत प्रहेलिका, कविकुल सुबुधि विचार ॥३०॥
जहाँ किसी वस्तु का, किसी ढग से, छिपाकर वर्णन किया जाता है,
वहाँ बुद्धिमान कविगण उसे विचार पूर्वक 'प्रहेलिका' कहते है।
उदाहरण (१)
प्रभाकर मण्डल वर्णन
दोहा
शोभित सत्ताईस सिर, उनसठि लोचन लेखि ।
छप्पन पद जानों तहां, बीस बाहु वर देखि ॥३१॥
जहाँ सत्ताइस सिर ( श्री ब्रह्माजी के चार, श्रीविष्णुजी का एक
श्री शङ्करजी के पांच, सरस्वती जी लक्ष्मी जी, पार्वती जी हॅस, गरुड़,
पृष्ठ:कवि-प्रिया.djvu/२७२
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