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बैल, सूर्य और अरुण के एकएक कुल आठ, सूर्य के घोडो के सात, सूर्य के
दो दो स्त्रियो के दो ) उनसठ आखें, ( क्योकि स्री शङ्करजी के तीन नेत्र
प्रतिमुख के हिसाब से ५ अधिक । ५६ चरण (क्योकि सूर्य के घोडो के
केवल मुख ही सात है, चरण केवल चार है ) और बीस भुजाये ( क्योकि
हॅस, गरुड, बैल और घोडे भुजा रहित है और ब्रह्माजी आदि देवताओ की
चार चार भुजाय है । निवास करती है, वह सूर्य मडल है ।
उदाहरण (२)
प्रभाकर मण्डल
दोहा
चरण अठारह, बाहुदस, लोचन सत्ताईस ।
मारत है प्रति पालि कै, शोभित ग्यारह शीश ॥३२॥
जहा अठारह चरण ( श्रीविष्णु के दो, श्री लक्ष्मी जी के दो, गरुड
के दो, श्री शङ्करजी के दो, उनके वृषभ के चार, श्री पार्वतीजी के दो
उनके सिंह के चार ) दस भुजाएँ ( चार श्रीविष्णु की दो श्रीलक्ष्मी जी
की दो, श्री शङ्करजी की और दो श्री पार्वती जी की ) सत्ताईस नेत्र
(श्री शङ्करजी के पाँच मुखो को तीन-तीन नेत्रो के हिसाब से १५ और
सब के दो, दो ) और ग्यारह (श्रीशङ्करजी के पाच तथा और सब के
एकएक ) शिर है, वह प्रभाकर मण्डल सारे ससार को जिलाता और
मारता है।
उदाहरण (३) .
दोहा
नौ पशु, नवही देवता, द्व पक्षी, जिहि गेह ।
केशव सोई राखि है, इन्द्रजीत सै देह ॥३३॥
'केशवदास' कहते हैं कि जिसके घर में नौ सूर्य के सात घोडे, एक
श्रो शङ्करजी का बैल (१ श्री पार्वती जी का सिंह ) पशु, नौ देवता
पृष्ठ:कवि-प्रिया.djvu/२७३
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