पृष्ठ:कवि-प्रिया.djvu/२७५

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(२५८)

एक वस्तु ऐसी है जो जाति को लता है और उसके अक्षरो का नाम सभी कहते है। जब वह सीधी रहती है तो आनन्द से मुख मे खाई जाती है और उसे उलट देने पर वस्त्र हो जाता है।

[उत्तर--दाख जिसे उलटने पर खदा (खद्दर वस्त्र) बनता है]

उदाहरण (७)

दोहा

सब सुख चाहे भोगिबो, जो पिय एकहिबार।
चन्द्र गहै जहँ राहु को, जैयो तिहि दरबार॥३७॥

हे पति! जो आप सब सुखो को एक ही बार में भोगना चाहते है, तो उस दरबार मे जाइएगा जहाँ चन्द्र राहु को पकड़ता है।

[उत्तर---राजा बीरबल का दरबार जहाँ 'चन्द्र' नामक द्वारपाल रहता था जो जाने वालो को, बिना आज्ञा के, नहीं जाने देता था।]

उदाहरण (८)

दोहा

ऐसी मूरि देखाव सखि, जिय जानत सब कोय।
पीठ लगावत जासु रस, छाती सीरी होय॥३८॥

हे सखी ऐसी बूटी दिखलाओ, जिसे सब कोई जानता है और जिसके पीठ मे लगते ही मारे आनन्द के हृदय शीतल हो जाता है।

[उत्तर---पुत्र-जो पीठ से लगकर खेलते है तब बड़ा आनन्द होता है]

३४-परिवृत्तालंकार

दोहा

जहां करत कछु औरई, उपजि परत कछु और।
तासों परिवृत जानियहु, केशव कविशिरमौर॥३९॥