पृष्ठ:कवि-प्रिया.djvu/२७८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
चौदहवाँ प्रभाव

३५---उपमालंकार

दोहा

रूप, शील, गुण होय सम, ज्यों क्योंहूँ अनुसार।
तासों उपमा कहत कवि, केशव बहुत प्रकार॥१॥


'केशवदास' कहते है कि जब किसी वस्तु या व्यक्ति का रूप, शील और किसी अन्य वस्तु या व्यक्ति के अनुरूप होता है, तब कविलोग उसे उपमा कहते है। इसके बहुत से प्रकार है।

उपमालंकार के भेद

दोहा

संशय हेतु, अभूत, अरु, अद्भुत, विक्रिय जान।
दूषण, भूषण, मोहमय, नियम गुणाधिक आन॥२॥
अतिशय, उत्प्रेक्षित, कहौ, श्लेष, धर्म विपरीत।
निर्णय, लाछनिकोपमा, असभाविता, मीत॥३॥
बुध विरोध, मालोपमा, और परस्पर रीस।
उपमां भेद अनेक है, मै बरणे इकबीश॥४॥

सशय, हेतु, अभुत, अद्भूत, विक्रय, दूषण, भूषण, मोह, नियम, गुणाधिक, अतिशय, उत्प्रेक्षित, श्लेष, धर्म, विपरीत, निर्णय, लाक्षणिक, असंभावित, विरोध, माल और परस्पर ये इक्कीस भेद ही मैंने वर्णन किये है, यद्यपि उपमा के बहुत से भेद है।