( २६२ )
१-संशयोपमा
दोहा
जहाँ नही निरधार कछु, सब सन्देह सुरूप ।
सो सशय उपमा सदा, बरणत है कविभूप ॥५॥
जहाँ कुछ निश्चित न होकर, सभी सन्देह स्वरूप हो, उसे सशयो.
पमा कहते हैं।
उदाहरण
सवैया
खंजन है मनरंजन केशव, रंजननैन किधौ, मतिजीकी ।
मीठी सुधाकि सुधाधर की द्युति, दंतनकी किधौ, दाडिम हीकी ॥
चन्द भलो, मुखचन्दीकधौ, सखि सूरति कामकी कान्हकी नीकी ।
कोमलपंकज कै, पदपंकज, प्राणपियारे कि मूरति पीकी ॥६॥
____ 'केशवदास' ( सखी की ओर से ) पूछते है कि खजन अच्छे हैं
या श्रीकृष्ण के नेत्र ? तू ही अपनी बुद्धि से निश्चय कर के बता ।
अमृत मोठा है या उन के अमृत जैसे ओठ ? उनके दाँतो की चमक
अच्छी है या अनार के दानो की ? हे सखी | चन्द्रमा अच्छा है या
उनका मुख चन्द्र ? कामदेव की सूरत अच्छी है या श्रीकृष्ण की
मूर्ति कमल कोमल है या उनके चरण-कमल ? प्राण अधिक प्यारे
है या श्रीकृष्ण की मूर्ति ।
२--हेतूपमा
दोहा
होत कौनहू हेतूते, अति उत्तम सों हीन ।
ताही सों हेतूपमा, केशव कहत प्रवीन ॥७॥
'केशव दास' कहते हैं कि जहाँ उपमान उपमेय से हीन होता है,
उसी को प्रवीण लोग 'हेतूपमा' कहते है।
पृष्ठ:कवि-प्रिया.djvu/२७९
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