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उदाहरण

कवित्त

अमल, कमल कुल कलित, ललित गति,
बेल सों बलित, मधु माधवी को पानिये।
मृगमद मरदि, कपूर धूरि चूरि पग,
केसरि के 'केशव' विलास पहिचानिये।
झेलिकै चमेली, करि चपक सों केलि, सेइ,
सेवती, समेत हेतु केतकी सों जानिये।
हिलि मिलि मालती सो आवत समीर जब,
तब तेरे सुख मुख बास सो बखानिये॥८॥

स्वच्छ होकर, कमलो को सुगन्ध से सुवासित सुन्दर चाल वाला, बेले की सुगंध से युक्त और माधवी के मकरंद को पीकर, कस्तूरी का मर्दन करके, कपूर की धूल को पैरो से कुचल कर चूर करके और केशवदास कहते है कि केसर के साथ विलास करता हुआ, चमेली, को झेल कर, चंपक से केलिकर के, सेवती की सेवा करके और केतकी से प्रेम करता हुआ और मालती से हिलमिल कर जब वायु आवे तब कही तेरे मुख की स्वाभाविक सुगन्ध जैसा कहा जा सकता है।

३---अभूतोपमा

दोहा

उपमा जाय कही नहीं, जाको रूप निहारि।
सो अभूत उपमा कही, केशवदास विचारि॥९॥

'केशवदास' कहते है कि जहाँ पर सौन्दर्य को देख कर उसकी उपमा न कही जा सके वहाँ अभूतोपमा कही जाती है।