( २६६ )
इन्दु के उदोत ते उकीरी ही सी काढ़ी, सब,
सारस सरस, शोभासार ते निकारी सी।
सोंधे की सी सोधी, देह सुधासो सुधारी, पावे,
धाकी देवलोक ते कि सिंधु ते उबारी सी।
अजु यासों हँसि खेलि बोलि चाल लेहुलाल,
___ काल्हि एक बाल ल्याऊँ काम की कुमारी सी ॥१४॥
'केशवदास' ( किसी दूती की ओर से श्रीकृष्ण से) कहते है कि जो
कुन्दन के ढेर से भी अधिक चमकीली है और जो चिन्तामणि की आभा
से चमकाकर उतारी गई सी है। जो चन्द्रमा के प्रकाश अर्थात् चादनी से
खोदकर निकाली गई सी है और जो सब कमलो से सुन्दर है तथा शोभा के
सार से निकाली हुई सी है। सुगन्ध से शुद्ध की गई है । जिसकी देह
है, जो देवलोक से आई है या समुद्र से निकाली गई है । हे लाल ।
( श्री कृष्ण) आज तो इस बाला के साथ हॅस बोल कर मन बहला लो,
कल मै एक कामदेव की कुमारी जैसी बाला लाऊँगी।
६-दूषणोपमा
___ दोहा
जहें दूषणगण बर्णिये, भूषण भाव दुराय ।
दूषण उपमा होति तह, बुधजन कहत बनाय ॥१५॥
जहाँ पर उपमानो के गुणो को छिपाकर केवल दोषो का वर्णन
किया जाय, वहाँ बुद्धिमान लोग दूषणोपमा कहते है ।
उदाहरण
सवैया
जौ कहूँ केशव सोम सरोज सुधा सुरभृङ्गनि देह दहे है ।
दाडिम के फल श्री फल विद्रुम, हाटक कोटिक कष्ट सहै है।
पृष्ठ:कवि-प्रिया.djvu/२८३
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