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पृष्ठ:कवि-प्रिया.djvu/२८४

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(२६७)

कोक कपोत करी अहि केसरि कोकिल कीर कुचील कहे है।
अंग अनूपम वा तिय के उनकी उपमा कहँ वेई रहे है॥१६॥

'केशवदास' कहते है कि यदि मै कहूँ कि चन्द्रमा और कमल उसके मुख जैसे है तो ठीक नहीं है, क्योकि चन्द्रमा को राहु ने और कमलो का भौरों ने शरीर जला डाला है। यदि दाँतो को अनार के दानो जैसा, कुचो को श्रीफल (बेल) जैसा, ओठो को मूंगे जैसा तथा रङ्ग को सोने जैसा कहूँ तो इन सबने भी करोड़ो कष्टो को सहन किया है। रहे कुचो की उपमा के लिए चक्रवाक, गर्दन के लिए कबूतर, चाल के लिए हाथी, भुजाओ के लिए साँप, कमर के लिए सिंह, वाणी के लिए कोयल, और नाक के लिए तोते, सो ये सभी मैले और कुरूप होते हैं। इसलिए उस प्रिया के सभी अंग अनुपम है। उसके अंगो की उपमा उसी से दी जा सकती है।

७---भूषणोपमा

दोहा

दूषण दूरि दुराय जहँ, बरणत भूषण भाय।
भूषण उपमा होत तहँ बरणत सब कविराय॥१७॥

जहाँ उपमानो के अवगुणो को छिपाकर केवल उनके गुणो का वर्णन किया जाता है, वहाँ सभी कविगण उसे भूषणोपमा कहते हैं।

कवित्त

सुबरण युत, सुरबरन कलित, पुनि,
भैरव सो मिलि, गति ललित, बितानी है।
पावन, प्रकट दुति द्विजन को देखियत,
दीपति दिपति अति, श्रुतिसुखदानी है।