पृष्ठ:कवि-प्रिया.djvu/२९०

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G 12 पृष्ठ २६६ सवैया १६ जौ कहूँ केशव सोम सरोज, सुधा सुरभृगनि देह दहे है। दाडिम के फल श्रीफल विद्रुम, हाटक कोटिक कष्ट सहै हैं । कोक कपोत करी अहि केसरि, कोकिल कीर कुचील कहे हैं। अंग अनूपम वा तिय के उनकी उपमा कह वेई रहे है। पृष्ठ ७७ सवैया ४६ खारिक खात न, माखन, दाख न दाडिमहूँ सह मेटि इठाई, केशव ऊख मयूखहु दूखत, आईही तोपहँ छाडि जिठाई।