( २९२ )
[ इसमे 'घव, धव' तथा 'माधव, माधव' मे जो यमक है, उसके
मा गया है । ये पद सटे हुए नहीं है, अत: सव्ययेत बीच में दूसरा पद
कहलाते हैं । ]
आदिअन्त यमक
दोहा
सीयस्वयम्बर माझ जिन, बनितन देखे राम ।
ता दिनते उन सवन सखि, तजे स्वयम्बर धाम ॥२०॥
श्री सीता जी के स्वयम्बर में जिन स्त्रियो ने श्री राम को देखा,
उसी दिन से उन सब ने, हे सखि ! अपने पतियो के घर छोड़ दिये
(कि वन मे जाकर तपस्या करें और श्रीराम सा वर पावे)
अथ पादांत निरन्तर यमक
दोहा
पाप भजत यों कहत ही, रामचन्द्र अवनीप।
नीप प्रफुल्लित देखि त्यों, विरहा प्रिया समीप ॥२१॥
राजा रामचन्द्र कहते ही जिस प्रकार पाप भाग जाते हैं,
उसी प्रकार कदम्ब को फूला हुआ देखकर विरही प्रिया के पास
भागता है।
[इसमे 'नीप, नीप' में यमक है, जो एक पद के अन्त मे है और
दूसरा चरण के आरम्भ मे]
.
__दोहा
जैसे छुवे न चन्द्रमा, कमलाकर सविलास ।
तैसेही सब साधुवर, मला करन उदास ॥२२।।
से चन्द्रमा फूले हुए कमलो को नहीं छूता, वैसे ही सब साधुजन
लक्ष्मी को हाथ से नहीं छूते ।
पृष्ठ:कवि-प्रिया.djvu/३१०
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