यमक के भेद
दोहा
सुखकर दुखकर भेद द्वै, सुखकर बरणे जान।
यमक सुनो कविराय अब, दुखकर करौं बखान॥२६॥
यमक के सुखकर और दुखकर दो भेद फिर हैं। अब तक सुखकर अर्थात् सरल यमको का वर्णन किया गया है। हे कविराय! सुनो, अब मैं दुखकर (कठिन) यमको का वर्णन करता हूँ।
दुखकर यमक
कवित्त
मानसरोवर आपने, मानस मानस चाहि।
मानस हरिके मीन को, मानस वरणेताहि॥२७॥
हे मान-सरोवर (अनिभान के सरोवर) मनुष्य! अपने मानस (मन) मे माँ (मक्ष्मी) को नस अर्थात् नश्य समझ। हरिरूपी मान-सरोवर की मछली अर्थात् हरिभक्ति में डूबने वालो को तू मानस (साधारण) मनुष्य कहता है।
दुखकर यमक--२
दोहा
बरणी बरणी जात क्यो, मुनि धरणी के ईश।
रामदेव नरदेव मणि, देव देव जगर्दीश॥२८॥
हे धरणी के ईश अर्थात् हे राजन्! मुझसे वरणी (यज्ञ में वरण किए हुए ब्राह्मणो को दिया हुआ दान) कैसे वर्णन किया जा सकता है। क्योंकि श्रीरामचन्द्रजी नरदेव अर्थात् राजाओ में श्रेष्ठ, देव-देव अर्थात् देवताओ में श्रेष्ठ और जगत के स्वामी है।