( २९५ )
दुखकर यमक-३
__ दोहा
राजराज सङ्ग ईशद्विज, राजराज सनमान ।
विष विषधर अरु सुरसरी, विष बिषमन उर आन ॥२६॥
ईश अर्थात् श्री शङ्कर जी के साथ राज राज (कुबेर ) हैं, द्विज
(चन्द्रमा) है और बडे-बडे राजा उनका सम्मान करते है। उनके साथ विष,
विषधर (साँप) और सुरसरी (श्री गङ्गा जी) भी हैं। इन्हे बिषम (बेजोड)
न समझो।
दुखकर यमक-४
प्रमानिका छन्द
प्रमान मान नाचेही, अमान मान राचही।
समान मान पावही, विमान मान धाबही ॥३०॥
तू अपने प्रमान ( वाल) पर नाचता है। उसको अमान (असीम )
मान ( ज्ञान ) समझता है। अत उसी के समान तू मान
(मादर ) पाता है। फिर भी मान ( अभिमान ) के विमान पर
दौडता है।
दुखकर यमक-५
दोहा
कुमनिहारि सहारि हठ, हितहारिनी प्रहारि ।
कहा रिसात बिहारि वन, हरि मन, हारि निहारि ॥३१॥
कुमति को हरादे, हठ को मार दे, हितहारिणी। (हानि पहुँचानेवाली
सखियो को प्रहारि अर्थात् भली-भाँति दण्ड दे। तू रिसाती क्यो है अर्थात्
मान क्यो करती है । हरि की मनुहारि ( विनती) को देख और उन्हीं के
साथ वन में बिहार कर।
पृष्ठ:कवि-प्रिया.djvu/३१३
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