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पृष्ठ:कवि-प्रिया.djvu/३१३

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दुखकर यमक---३

दोहा

राजराज सङ्ग ईशद्विज, राजराज सनमान।
विष विषधर अरु सुरसरी, विष बिषमन उर आन॥२९॥

ईश अर्थात् श्री शङ्कर जी के साथ राज राज (कुबेर) हैं, द्विज (चन्द्रमा) है और बड़े-बड़े राजा उनका सम्मान करते है। उनके साथ विष, विषधर (साँप) और सुरसरी (श्री गङ्गा जी) भी हैं। इन्हें बिषम (बेजोड़) न समझो।

दुखकर यमक--४

प्रमानिका छन्द

प्रमान मान नाचेही, अमान मान राचही।
समान मान पावही, विमान मान धाबही॥३०॥

तू अपने प्रमान (ताल) पर नाचता है। उसको अमान (असीम) मान (ज्ञान) समझता है। अतः उसी के समान तू मान (आदर) पाता है। फिर भी मान (अभिमान) के विमान पर दौड़ता है।

दुखकर यमक-५

दोहा

कुमनिहारि सहारि हठ, हितहारिनी प्रहारि।
कहा रिसात बिहारि वन, हरि मन, हारि निहारि॥३१॥

कुमति को हरादे, हठ को मार दे, हितहारिणी। (हानि पहुँचानेवाली सखियों को प्रहारि अर्थात् भली-भाँति दण्ड दे। तू रिसाती क्यों है अर्थात् मान क्यों करती है। हरि की मनुहारि (विनती) को देख और उन्हीं के साथ वन में बिहार कर।