पृष्ठ:कवि-प्रिया.djvu/३३३

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उदाहरण-२

सवैया

हास विलास निवास है केशव, केलि विधान निधान दुनी में।
देवर जेठ पिता सु सहोदर है सुखही युत बात सुनी में॥
भोजन भाजन, भूषण, भौन भरे यश पावन देवधुनी में।
क्यों सब यामिनि रोवत कामिनि कत करै सुभगान गुनी में॥४॥

'केशव' कहते है कि कोई सखि अपनी सहेली से किसी नायिका के बारे में प्रश्न करती हुई पूछने लगी कि 'वह नायिका हास-विलास की तो मानो घर ही है अर्थात् हास-विलास खूब जानती है। संसार में सब प्रकार के केलि विधानो की जानकारी भी उसे है। उसके देवर, जेठ, पिता तथा सगे भाई सब कोई हैं और मैंने सुना है कि उसको सब प्रकार के सुख हैं उसका घर भोजन, बर्तन तथा भूषणो से भरा है और गंगा जैसा पवित्र यश भी उसे प्राप्त है। उसका पति गुणीजनो में उसकी प्रशंसा भी करता है। तब क्या कारण है कि वह स्त्री रात भर रोया करती है? [इसका उत्तर अंतिम चरण के 'सुभगा न गुनी मैं' शब्दों में छिपा हुआ है अर्थात् मैंने समझ लिया है कि 'वह सुभगा (सुन्दर) नहीं है]

उदाहरण-३

सवैया

नाह नयो, नित नेह नयो, परनारि तो केशौ केहूँ न जोवै।
रूप अनूपम भूपर भूर सो, आनँदरूप नहीं गुन गोवै॥
भोन भरी सब संपति दंपति, श्रीपति ज्यों सखसिधमें सोवै।
देव सो देवर प्राण सो पूत सु कौन, दशा सुदती जिहि रोवै॥५०॥

'केशवदास' कहते है कि उसका नायक युवा है स्नेह भी नया है, और वह दूसरी स्त्री की ओर (स्वप्न में भी) नहीं देखता। अनुपम उसकी