( ३१५ )
उदाहरण-२
सर्वया
हास विलास निवास है केशव, केलि विधान निधान दुनी में।
देवर जेठ पिता सु सहोदर है सुखही युत बात सुनी में ।।
भोजन भाजन, भूषण, भौन भरे यश पावन देवधुनी में।
क्यों सब यामिनि रोवत कामिनि कत करै सुभगान गुनी में ॥४॥
___ 'केशव' कहते है कि कोई सखि अपनी सहेली से किसी नायिका
के बारे मे प्रश्न करती हुई पूछने लगी कि 'वह नायिका हास-विलास
की तो मानो घर ही है अर्थात् हास-विलास खूब जानती है। ससार में
सब प्रकार के केलि विधानो की जानकारी भी उसे है। उसके देवर,
जेठ, पिता तथा सगे भाई सब कोई हैं और मैने सुना है कि उसको
सब प्रकार के सुख हैं उसका घर भोजन, वर्तन तथा भूषणो से भरा है
और गगा जैसा पवित्र यश भी उसे प्राप्त है। उसका पति गुणीजनो
में उसकी प्रशसा भी करता है । तब क्या कारण है कि वह स्त्री रात भर
रोया करती है | इसका उत्तर अतिम चरण के 'सुभगा न गुनी मै'
शब्दो मे छिपा हुआ है अर्थात् मैंने समझ लिया है कि 'वह सुभगा
(सुन्दर ) नहीं है]
उदाहरण-३
सवैया
नाह नयो, नित नेह नयो, परनारि तो केशौ केहूँ न जोवै ।
रूप अनूपम भूपर भूर सो, आदरूप नहीं गुन गोवै ॥
भोन भरी सब संपति दपति, श्रीपति ज्यों सखसिधमें सोवै ।
देव सो देवर प्राण सो पूत सु कौन, दशा सुदती जिहि रोवै ॥५०॥
'केशवदास' कहते है कि उसका नायक युवा है स्नेह भी नया है,
और वह दूसरी स्त्री की ओर (स्वप्न मे भी) नहीं देखता । अनुपम उसकी
पृष्ठ:कवि-प्रिया.djvu/३३३
Jump to navigation
Jump to search
यह पृष्ठ शोधित नही है
