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सुन्दरता है, पृथ्वी पर राजा के समान आनन्द रूप है तथा के गुण
उससे छिपा नहीं है। घर में सब प्रकार की सम्पत्ति भरी हुई है और
दोनो ही पति पत्नी लक्ष्मी समेत क्षीर समुद्र में सोने वाले श्री विष्णु
भगवान् की भाँति सुख के समुद्र मे सोया करते है। उसका देवता
स्वरूप देवर नथा प्राण जैसा प्रिय पुत्र है। फिर ऐसी कौनसी परिस्थिति
है, जिसके वश होकर वह सुदती ( सुन्दर दाँतो वाली ) रोया करती
है। [ इसका उत्तर अतिम वाक्याश 'नद सासु दतो जेहि रोवे'
मे निकलता है अर्थात् नन्द और सास कष्ट देती है, इसलिए
रोती है।]
एकानेकोत्तर
दोहा
एकहि उत्तर में जहॉ, उत्तर गूढ अनेक ।
उत्तर नेकानेक यह, बरणत सहित विवेक ॥५१॥
जहाँ एक ही उत्तर में अनेक गूढ अर्थ निकल आवे, विवेको
(बुद्धिमान ) लोग, उसे 'एकानेकोत्तर' अलङ्कार कहते हैं।
दोहा
उन्तर एक समस्त को, व्यस्त अनेकन मानि ।
जोर अन्त के वर्ण सों, क्रमहीं बरण बखानि ॥५२॥
परन्तु वह समस्त उत्तर, अनेक अक्षरो मे व्यस्त ( सम्मिलित )
रहता है, अत. अतिम अक्षर मे आरम्भ से लेकर क्रमश. एक एक
अक्षर जोडते हुए उत्तर निकालना चाहिए।
उदाहरण
छप्पया
कहा न सज्जन बुवत कहा, सुनि गोपी मोहित ।
कहा दास को नाम, कक्ति मे कहियत कोहित ॥५३॥
पृष्ठ:कवि-प्रिया.djvu/३३४
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