सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:कवि-प्रिया.djvu/३३४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
(३१६)

सुन्दरता है, पृथ्वी पर राजा के समान आनन्द रूप है तथा के गुण उससे छिपा नहीं है। घर में सब प्रकार की सम्पत्ति भरी हुई है और दोनों ही पति पत्नी लक्ष्मी समेत क्षीर समुद्र में सोने वाले श्री विष्णु भगवान् की भाँति सुख के समुद्र मे सोया करते है। उसका देवता स्वरूप देवर नथा प्राण जैसा प्रिय पुत्र है। फिर ऐसी कौनसी परिस्थिति है, जिसके वश होकर वह सुंदती (सुन्दर दाँतो वाली) रोया करती है। [इसका उत्तर अंतिम वाक्यांश 'नंद सासु दतो जेहि रोवै' में निकलता है अर्थात् नन्द और सास कष्ट देती है, इसलिए रोती है।]

एकानेकोत्तर

दोहा

एकहि उत्तर में जहॉ, उत्तर गूढ़ अनेक।
उत्तर नेकानेक यह, बरणत सहित विवेक॥५१॥

जहाँ एक ही उत्तर में अनेक गूढ़ अर्थ निकल आवे, विवेकी (बुद्धिमान) लोग, उसे 'एकानेकोत्तर' अलङ्कार कहते हैं।

दोहा

उत्तर एक समस्त को, व्यस्त अनेकन मानि।
ओर अन्त के वर्ण सों, क्रमहीं बरण बखानि॥५२॥

परन्तु वह समस्त उत्तर, अनेक अक्षरो में व्यस्त (सम्मिलित) रहता है, अतः अंतिम अक्षर में आरम्भ से लेकर क्रमशः एक एक अक्षर जोड़ते हुए उत्तर निकालना चाहिए।

उदाहरण

छप्पया

कहा न सज्जन बुवत कहा, सुनि गोपी मोहित।
कहा दास को नाम, कक्ति में कहियत कोहित॥५३॥