पृष्ठ:कवि-प्रिया.djvu/३४३

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दार नहीं है और कपड़ा धोने के लिए पानी नहीं है। फिर तीन प्रश्नो का उत्तर, जान नहीं है। अर्थात् घोड़ा कुदाने के लिए जानु अर्थात् जंघा नहीं है, वह लॅगड़ा है, शब्दो से धोखा देने का मुझे जान अर्थात् ज्ञान नहीं है और रंक में गुण बताने की मुझे जानकारी नहीं है अंतिम तीन प्रश्नों का उत्तर कवि नहीं है। अर्थात् भावों को जानने के लिए मैं कवि नहीं हूँ, सब के घर जाने के लिए भी कवि हूँ, जो सब जगह पहुँच सकूँ, प्रत्येक घर में आदर हो और लंका का धन लाने के लिए भी मैं कवि अर्थात् शुक्राचार्य नहीं हूँ जो अपने यजमान रावण से धन माँग लाऊँ।]

प्रश्नोत्तर

दोहा

जेई आखर प्रश्न के, तेई उत्तर जान।
यहि बिधि प्रश्नोत्तर सदा, कहै सुबुद्धिनिधान॥६६॥

जहाँ जो अक्षर प्रश्न के होते है, वे ही उत्तर के भी बन जाते हैं। इस तरह की रचना को बुद्धिमान लोग सदा प्रश्नोत्तर अलंकार कहते हैं।

उदाहरण-१

दोहा

को दण्डग्राही सुभट, को कुमार रतिवत।
को कहिये शशिते दुखी, को कोमल मन सन्त॥६७॥

कौन सुभट दण्ड ग्राही (कर वसूलने वाला) होता है? कौन कुमार रतिवत (प्रेमी) होता है? चन्द्रमा से कौन दुखी कहलाता है? और हे सन्त! कोमल मन वाला कौन होता है? इन प्रश्नो के उत्तर प्रश्न के शब्दो में ही निकल आते है। पहले का उत्तर है 'को दण्ड ग्राही' अर्थात् धनुषधारी, दूसरे का उत्तर 'को कुमार रतिवत' है अर्थात् कोक-