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वश मे ही है और दास है अत: वही केलि ( क्रीडा ) वनी है अर्थात्
क्रीडा स्थली है और बलमा (प्रियतम ) भी वहीं है ।
व्यस्त गतागत
सवैया
सैनन माधव, ज्यो सर के सबरेख सुदेश सुवेश सबै ।
नैनवकी तचि जी तरुणी रुचि चीर सबै निमिकाल फलै ।।
तै न सुनी जस भीर भरी धरि धीरऽबरीत सु का न वहै ।
मैनमनी गुरुचाल चलै शुभसो बन मे सरसी व लसै ॥७२॥
माधव को सैन ( शयन, नींद ) आती। सुदेश (सुन्दर ) और
सुवेश (अच्छे वेशवाली ) सभी स्त्रियाँ उन्हे बारण समान ज्ञात होती हैं।
उन्होने जी मे तजकर ( दुखी होकर जलकर ) नैनव अर्थात् नयी नीति
को अपनाया है । अन्य तरुरिणयो की रुचि ( शोभा ) और चीर ( वस्त्र)
उन्हें नीम तथा कालफल ( इन्द्रायण) जैसे कटु लगते है। वहाँ स्त्रियो
की जितनी भीड रहती है, उसे क्या तूने नहीं सुना ? वे स्त्रियाँ इतनी
सुन्दर है कि उन्हे देखकर रीति अर्थात् कुल मर्यादा का वहन कौन
कर सकता है ? भाव यह है कि उन्हे देख लेने पर कुलमर्यादा का
निर्वाह करना कठिन है-विचलित हो जाने की सम्भावना है। पर वह
मैनमणि अर्थात् कामदेव जैसा सुन्दर नायक गुरुचाल ( मर्यादा को
चाल) पर चलता है और वह शुभ नायक (श्रीकृष्ण ) इस समय वन मे
सरसी ( जलाशय ) के निकट बैठा है।
सवैया
इसे उलट कर पढने से जो सवैया बनेगा वह इस प्रकार है :-
(४) शैल बसा रसमैनवशोभ सु लै चल चारुगुणी मनमै ।
(३) है बनको सु, ति, री, बर, धीर, धरी, भर, भीसजनीसुनते ।।
(२) लै फल कामिनि, वैसरची, चिरु, नीरुतजीचितकीवनने ।
(१) वैससुवेशसदेसुखरेबसकैरसज्योंबधमाननसै ॥७३॥
पृष्ठ:कवि-प्रिया.djvu/३४६
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