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सुवरण जटित पदारथनि, भूषण भूषित मान ।
कविप्रिया है कविप्रिया, कविकी जीवन जान ॥३॥
पल पल प्रति अवलोकिबो, सुनिबो गुनिबो चित्त ।
कविप्रिया को रक्षिये, कविप्रिया ज्यों मित्त ॥४॥
अनल अनिल जल मलिन ते, विकट खलन ते निन्त ।
कविप्रिया ज्यों रक्षिये, कविप्रिया ज्यों मित्त ॥५॥
केशव सोरह भाव शुभ, सुवरन मय सुकुमार ।
कविप्रिया के जानिये, यह सोरह शृङ्गार ॥६॥
केशवदास कहते हैं कि इस प्रकार कामधेनु से लेकर कल्पवृक्ष
पर्यन्त अनेक प्रकार के चित्र काव्य कविगण वर्णन किया करते है।
अतः चित्रकाको को असख्य मानना चाहिये । मैने तो अपनी बुद्धि के
अनुकूल उनके वर्णन करने का मार्ग भर बतला दिया है। उनके बने
हुए मणि जटित गहनो के समान सुशोभित यह 'कवि प्रिया कवियो
की प्यारी है और उसको कवि प्राणो जैसा प्रिय मानते हैं । हे मित्र ।
इसे पल-पल देखना, सुनना और मन से समझना तथा इस 'कवि-
प्रिया' को कविप्रिया की भांति ही रक्षा करना तथा इसकी आग, पानी
तथा विकट दुष्टो से नित्य रक्षा करना। 'कविप्रिया' के सुवरन ( सुन्दर
अक्षरो युक्त), तथा सुकुमार (कोमल) भावो से युक्त सोलहो प्रभावों
को सोलह शृङ्गार के समान मानिए ।
पृष्ठ:कवि-प्रिया.djvu/३६४
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