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पृष्ठ:कवि-प्रिया.djvu/३६३

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( ३४३ ) अथ डमरूबद्ध जगत केशव ___ ___मति मत हर र स र वर श्री स A समय नव जी न मर | र क सिव र सु । ख दुख सु ल क इन दोहो का डमरू भी बन सकता है- दोहा काम धेनु दै आदि औ, कल्प वृक्ष परयत ।' बरणत केशवदास कवि, चित्र कवित्त अनंत ॥१॥ इहि विधि केशव जानिये, चित्र कवित्त अपार । वरणन पंथ बताय मै, दीनो बुधि अनुसार ॥१३॥