गण के साथ से कुल का नाश और 'शत्रुगण' के साथ 'शत्रुगण' पडनो पर नायक का नाश हो जाता है। गणागण के उदाहरण । दोहा राधा राधारमन के, मन पठयो है साथ । ऊधव ! ह्या तुम कौनसों, कहौ योगकी गाथ ॥३०॥ कहा कहो तुम पाहुने, प्राणनाथ के मित्त । फिर पीछे पछिताहुगे, ऊधौ समुझौ चित्त ॥३१॥ दोहा दुहूँ उदाहरन, आठौ आठौ पाय । केशव गन अरु अगनके, समुझौ सबै बनाय ॥३२॥ हे उद्धव | राधा ने अपना मन राधा-रमण (श्रीकृष्ण ) के साथ भेज दिया है मत तुम यहाँ किससे योग की बात कहते हो । हे उद्धव क्या कहूँ | तुम पाहुने हो और प्राणनाथ ( श्रीकृष्ण ) के मित्र हो । अपने हृदय में विचार करो नहीं तो फिर पीछे पछताओगे। 'केशवदास' कहते हैं कि इन दोनो दोहो के आठ चरण गण और अगरण के उदाहरण है; इन्हे अच्छी तरह समझ लो। इन दोहो मे गणागण का मेल दिखलाया गया है, वह इस प्रकार है :- (१) राधारा धारम = मगण+भगण (मित्र और दास) (२) मनप ठयोहै = नगण+यगण (दास और मित्र) (३) ऊद्धव हयांतुम = भगण+भगण (दास और दास) (४) कहौ यो गकीगा= यगण+यगण (दास और दाम) ये शुभ गया हैं। (५) कहाक हो तुम = जगण+मगण ( उदासीन और दास) (६) प्राणना थकेमि= रगण+यगण (शत्रु और दास) (७) फिरिपीछेपछि = सगण+भगण (शत्रु और दास) (6) ऊधौस मुभौचितगण+यगण ( उदासीन और दास)