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पृष्ठ:कवि-प्रिया.djvu/३८

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ये अशुभ गण है।

कवित्त संख्या २८ और २९ के अनुसार पहले और दूसरे उदाहरण का फल विजय होगा क्योकि मित्र गण और दास गण साथ-साथ पड़े है। तीसरे और चौथे उदाहरण में दास गणो का मेल हुआ है अत परिणाम सर्वजीवो को वश मे करने वाला होना चाहिए। पाँचवे उदाहरण मे उदासीन और दासगणो का साथ है, इसलिये परिणाम प्रभुता प्राप्ति होगा। छठे और सातवें उदाहरण में शत्र और दास गण साथ-साथ आ पड़े हैं इसलिए इसका परिणाम वनितानाश होना चाहिए। आठवें उदाहरण मे उदासीन और दास गणो का मेल है, अतः परिणाम प्रभुता-प्राप्ति होना चाहिए।

छठे और आठवें उदाहरण मे 'मि' 'चि' ह्रस्व होते हए भी दीर्घ माने गये है क्योकि पिंगलशास्त्र के अनुसार संयुक्त अक्षर के पहले का अक्षर दीर्घ माना जाता है। 'केशवदास' जी भी नीचे लिखे दोहे मे यही बात कहते है---

गुरु-लघुभेद वर्णन

संयोगी के आदि युत, बिदु जु दीरघ होय।
सोई गुरु लघु और सब, कहै सयाने लोय॥३३॥

सयाने ( चतुर या बुद्धिमान ) लोग कहते है कि संयुक्ताक्षर के पहले वाला अक्षर, बिंदु ( अनुस्वार ) युक्त तथा स्वयं दीर्घ अक्षर ही गुरु कहलाते है। इनके अतिरिक्त और सभी 'अक्षर लघु' हैं।

दीरघहू लघु कै पढ़े, सुखहो मुख जिहि ठौर।
सोऊ लघु करि लेखिये, केशव कवि सिरमोर॥३४॥

'केशवदास' कहते है कि हे कवि शिरोमणि। जहाँ दीर्घ अक्षर को लघु करके पढ़ने में मुख को सुविधा होती है, वहाँ उसे भी लघु ही समझना चाहिए।