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महाकवि केशवदास

                   [ १६१८-१६७४ ]
                      [सक्षिप्त परिचय]

अन्य महाकवियों की भाँति महाकवि केशवदास जी के जीवन-चरित्र में अनुमान से काम नहीं लेना पडता, क्योकि उन्होने कविप्रिया में अपना विस्तृत परिचय स्वयं ही दिया है। यह सनाढ्य ब्राह्मण थे। उनका गोत्र भारद्वाज और अल्ल 'मिश्र' थी। उनके पूर्वज ब्रजमण्डल के डीग कुम्हेर नामक स्थान के निवासी थे। ओरछा के संस्थापक राजा रुद्रप्रताप के समय उनके पितामह कृष्णदत्त मिश्र ओरछा में आकर बस गये। उन्हें राजा रुद्रप्रताप ने पुराण-वृत्ति पर नियुक्त किया था। राजा रुद्रप्रताप के उत्तरा- धिकारी मधुकरशाह हुए जिन्होंने इनके पिता काशीनाथ मिश्र का बडा सम्मान किया । वह उन्हीं के दरबार में रहते थे। केशवदास जी के दो भाई और थे । बडे बलभद्र मिश्र और छोटे कल्याणदास । मधुकर शाह के बाद उनके जेष्ठ पुत्र राम शाह ओरछा की गद्दी पर बैठे। उनके आठ भाई थे, जिनमे इन्द्रजीत पर उन्हें अधिक विश्वास था। राज्य का सारा भार उन्होने इन्हीं पर डाल रखा था। राज्य को देख-भाल यही करते थे। इन्हीं इन्द्रजीत ने महाकवि केशवदास जी का बड़ा सम्मान किया और २१ ग्राम भेंट में दिये । वह इन्हे अपना गुरू मानते थे। इसी नाते राजा रामशाह भी इन्हे आदर की दृष्टि से देखते थे।

  केशवदास जी बडे स्वाभिमानी तथा निस्पृह थे। अपनी निस्पृहता

के दो उदाहरण उन्होने 'कविप्रिया' में दिए हैं। एक बार जब यह राजा इन्द्रजीत के साथ तीर्थ यात्रा को गये, तब उन्होने प्रयाग में इनसे