'केशवदास' कहते हैं कि कवि लोग जहाँ-जहाँ समुद्र का वर्णन करते हैं, वहाँ-वहाँ रत्नो का भी उल्लेख कर देते हैं ( यद्यपि प्रत्येक समद्र मे रत्न नहीं होते। ) इसी प्रकार छोटे-छोटे तालाबो मे भी हंसो का वर्णन किया करते है ( यद्यपि वे केवल मानसरोवर में रहते है। )
दोहा
लेन कहैं भरि भूठि तग, सूजनि सियनि बनाय।
अंजुलि भरि पीपन कहै, चंद्र चद्रिका पाय॥७॥
( रावण का गुप्तचर बन्दरो की सेना को देखकर आने के बाद उससे कहता है कि उस सेना में ऐसे-ऐसे बन्दर है कि जो ) अंधकार को सुई से सीकर मुट्ठी में भर लेने की बात कहते है और चन्द्रमा की चॉदनी को ण जाने पर अजुलि में भर कर पीने की चर्चा किया करते हैं। ( इसमे सभी बातें मिथ्या है परन्तु सत्य की तरह वर्णन कर दी गई है। )
दोहा
सबके कहत उदाहरण, बाढ़ै ग्रन्थ अपार।
कछू कछू ताते कह, कविकुल चतुर विचार॥८॥
इस प्रकार सब बातों का उदाहरण देने पर ग्रन्थ बहुत बढ़ जायगा। इसलिए कुछ थोड़े उदाहरण दे दिए हैं। चतुर कवि लोग ( उन्हीं के आवार पर ) स्वय विचार कर लेंगे।
वम का झूठ वर्णन
कवित्त
कंटक न अटकै न फाटत चरण चपि,
बात ते न जात उड़ि अंग न उधारिये।
नेकहू न भीजत मूसालधार बररात,
कीच न रचत रच चित्त में बिचारिये।
'केशोदास' सावकाश परम प्रकास न,
उसारिये पसारिये न पिय पै विसारिये।
चलिये जू ओढि पट तमही को गाढ़ो तम,
पातरो पिछौरा सेत पाट को उतारिये॥९॥