अन्त्म अथवा द्वितीय श्रेणी के है। ( अर्थात् केवल धन-प्राप्ति के लिए कविता करते है। ) जो 'मध्यम' या तृतीय श्रेणी के कवि है, उनकी कविता से न तो स्वार्थ ही बनता है और न परमार्थ की प्राप्ति होती है। इस श्रेणी के कविया के सम्बन्ध में ही महाभारत में श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा है कि हे अर्जुन! जो परमार्थ और स्वार्थ से रहित कविता करते है, उन्हे क्या कहे।'
कवि रीति वर्णन
दोहा
साँची बात न बरनही, झूंठी बरननि बानि।
एकनि बरनै नियम कै, कवि मत त्रिविध बखानि॥४॥
कवियो के वर्णन करने की बानि होती है कि वे (१) कभी सच्ची बात को झूठ और (२) कभी झूठी बात को सच्ची वर्णन करते हैं। एक तीसरे प्रकार के कवि ऐसे भी होते है जो सब बातो का वर्णन नियमानुकूल करते है। इस तरह कवियो के वर्णन के तीन मत,( शैली ) बतलाये गये है।
१-सत्य को मिथ्या कहना
दोहा
'केशवदास' प्रकास बहु, चंदन के फल फूल।
कृष्णपक्ष की जोन्ह ज्यो, गुस्ल पक्ष तम तूल॥५॥
'केशवदास' कहते हैं कि चन्दन के वृक्ष में प्रत्यक्ष रूप से फल और फूल दोनो रहते है। ( परन्तु कविलोग केवल फूलो का वर्णन करते हैं। ) इसी प्रकार कृष्ण और शुक्ल पक्ष में चाँदनी और अन्धकार बराबर मात्रा में रहते है। ( परन्तु कवि केवल शुक्ल पक्ष का ही वर्णन करते हैं। )
झूठ को सत्य कहना
जहँ जहँ वरणतरिधुराब, तहँ तहँ रजनि लेखि।
सूक्षम सरवरहू कहै, केशव हंस विशेखि॥६॥